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प्राचीन विश्व की पांच में से केवल एक सिंधु घाटी सभ्यता 'ईश्वर' के अस्तित्व को नहीं मानती थी। यहां न तो पूजा स्थल था और न ही पुरोहित। राजसत्ता के बजाय यहां लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था थी। यदि कोई शासक और शासित का स्थाई विभाजन था भी, तब भी दोनों वर्गों के बीच आर्थिक व सामाजिक विषमता की खाई बहुत कम थी। इसी की झलक वैशाली के साम्राज्य में दिखाई देती हैं। यह सभ्यता आत्मनिर्भर थी और यहां प्रकृति की मूल समझ के आधार पर सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक व्यवस्था के नियम बनाए गए थे। मूलनिवासी सभ्यता संघ इसी प्राचीन आदर्श यानी प्रकृति की मूल समझ के आधार पर नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक आचरण में देखना चाहता है। संविधान की उद्देशिका इसमें हम सब की मदद करती है। भारतीय राष्ट्रीय वाङ्मय संगीति मूलनिवासी सभ्यता संघ का उपक्रम है, जिसका कार्यक्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता और संविधान की उद्देशिका के मूल्यों के लिए साहित्य में स्थान उपलब्ध कराने के लिए व्यवस्था करना और करवाना है। कहानी, कविता और नाटक, साहित्य के ऐसे औजार हैं जिससे नागरिकों की समझ का विकास प्राचीन आदर्श और संविधान की उद्देशिका को व्यवहारिकता प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। हम भारत के लोग इस दिशा में काम करने के लिए यहां इकट्ठे हैं
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